हिमाचल में अब स्थापित होंगी स्वदेशी एंटीहेल गन

बागवानी मंत्री ने अधिकारियों को दिए योजना बनाने के निर्देश

शिमला, 1 जून। हिमाचल प्रदेश की पांच हजारा करोड़ रुपए से अधिक की सेब आधारित अर्थव्यवस्था को ओलों से बचाने के लिए जल्द ही स्वदेशी एंटहेलगन प्रणाली स्थापित होगी। बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने अधिकारियों को प्रदेश में स्वदेशी एंटीहेल गन को ट्रायल के आधार पर सेब उत्पादक क्षेत्रों में स्थापित करने के लिए योजना तैयार करने को कहा है। महेंद्र सिंह ठाकुर आज शिमला में बागवानी विभाग की समीक्षा बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने इस मौके पर ये भी कहा कि प्रदेश में इस साल ओलावृष्टि से अब तक बागवानी और कृषि को 250 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है और इसकी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को प्राप्त हो गई है जिसकी भरपाई के लिए मामला केंद्र सरकार से उठाया जाएगा। बागवानी मंत्री ने इस मौके पर सेब उत्पादकों की सुविधा के लिए समय पर आवश्यक कदम उठाने को भी कहा ताकि बागवानों को कार्टन व सेब की ढुलाई के लिए ट्रकों की कमी से न जूझना पड़े।

महेंद्र ठाकुर ने कहा कि आईआईटी मुम्बई व डा. वाई.एस. परमार बागवानी विश्वविद्यालय नौणी के संयुक्त प्रयासों से स्वदेशी एंटीहेल गन विकसित की गई है। उन्होंने कहा कि बागवानों के हित में इस स्वदेशी एंटीहेल गन को ट्रायल आधार पर प्रदेश में 8 से 10 स्थानों पर स्थापित करने के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया जाए ताकि इस स्वदेशी एंटीहेलगन का अध्ययन किया जा सके और बागवानों को कम कीमत वाली स्वदेशी एंटीहेलगन तकनीक उपलब्ध हो सके। उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रदेश में जिस विदेशी एंटीहेलगन का प्रयोग किया जा रहा है उसकी कीमत लगभग 2 से 3 करोड़ रुपये हैं। उन्होंने कहा कि स्वदेशी तकनीक की एंटीहेलगन के माध्यम से ही एंटीहेलगन की कीमतों को कम किया जा सकता हैं।

उन्होंने कहा कि सेब की पेटियों की दरें एचपीएमसी के सहयोग से निर्धारित की जाए और सेब की पेटियों को बनाने वाले निर्माताओं को सूचीबद्ध किया जाए ताकि बागवानों को उचित दरों पर सेब की पेटियां समय पर उपलब्ध हो सकें। उन्होंने कहा कि गत्ते की पेटियों के स्थान पर प्लास्टिक कार्टन का उपयोग सेब के विपणन हेतू प्रयोग के तौर पर करने की भी सम्भावना तलाशी जाए।

महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि  विश्व बैंक पोषित बागवानी परियोजना के अन्तर्गत बनाए जा रहे मार्केटिंग यार्डो एवं शीत गृह निर्माण आदि के कार्यो में तजी लाई जाए ताकि सेब उत्पादक बागवानों को सुविधा मिल सके। उन्होंने कहा कि जो सेब  मंडी मध्यस्थता योजना के अन्तर्गत एचपीएमसी और हिमफेड द्वारा प्रापण किए जाते हैं, उनकी बोरियों पर फल प्रापण केंद्र का नाम व संख्या दर्ज की जाए ताकि प्रापण किए गए फलों की गुणवता की जांच हर स्तर पर सुनिश्चित की जा सके।