अब वर्क फ्रॉम माउंटेन भरेगा हिमाचल के पर्यटन उद्योग की झोली

अब वर्क फ्रॉम माउंटेन भरेगा हिमाचल के पर्यटन उद्योग की झोली

शिमला, 3 जून। कोरोना महामारी ने देश अथवा प्रदेश का ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को आर्थिक मंदी के दौर में धकेला है। ऐसे में न केवल जीने का तरीका बदला है बल्कि काम काज के तौर तरीके भी पूरी तरह बदल रहे हैं। हिमाचल भी इससे अछूता नहीं है। कोरोना महामारी के कारण छाई मंदी से पार पाने के लिए इस पर्यटक राज्य में भी लगातार कसरत जारी है। इन्हीं में से एक है वर्क फ्रॉम माउंटेन। काम करने के इस तरीकेका इन दिनों हिमाचल में चलन बढ़ने लगा है और आने वाले दिनों में राज्य के पर्यटन उद्योग को काम-काज के बदलते इस तरीके से सहारा मिलने की उम्मीद जगी है।

दुनिया भर के पर्यटकों की पसंद कुल्लू घाटी में इन दिनों पर्यटन कारोबारियों के लिए वर्क फ्रॉम माउंटेन कंसेप्ट उम्मीद की एक किरण बनकर आया है। कुल्लू जिला की तीर्थन, बंजार, जिद्धी, मनाली, मनीकरण, कसोल, बरशैणी और टोश घाटी देश के महानगरों के लोगों के लिए वर्क फ्रॉम माउंटेन की पसंदीदा जगहें बनती जा रही हैं। कुल्लू घाटी के इन इलाकों में महानगरों में वर्क फ्रॉम होम कर रहे लोग एक पखवाड़े से लेकर छह महीने तक की लम्बी बुकिंग पर यहां आकर ठहर रहे हैं। हिमाचल में इंटरनेट और बिजली की सुविधाएं देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले ज्यादा बेहतर है। ऐसे में खासकर निजी कम्पनियों अथवा एमएनसी में कार्य कर रहे महानगरों के लोग वहां की तनाव भरी जिंदगी को पीछे छोड़ हिमाचल के इन रमणीक स्थलों की स्वच्छ आबोहवा का न केवल आनंद ले रहे हैं बल्कि महानगरों की तर्ज पर यहां से अपनी नौकरी भी कर रहे हैं।

कुल्लू जिला की बंजार घाटी की जिद्धी में बीते एक पखवाड़े से रह रहे दिल्ली के आकाश बहल का कहना है कि उन्हें यहां आकर न केवल दिल्ली के ट्रैफिक और प्रदूषण के साथ-साथ कोरोना के डर से राहत मिली है बल्कि वह अपनी नौकरी भी ज्यादा बेहतर ढंग से कर पा रहे हैं। आकाश बहल एक विदेशी कंपनी में साइबर एनालिस्ट हैं और हैदराबाद में नौकरी करते हैं लेकिन लॉकडाउन के चलते पिछले एक अरसे से वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें हिमाचल के पर्यटन व्यवसायियों द्वारा आरंभ किए गए वर्क फ्रॉम माउंटेन कंसेप्ट का पता चला और उन्होंने इसे अपनाने में जरा भी देर नहीं की।

कनाडा की एक कंपनी में काम कर रही दिल्ली की अर्चना भी वर्क फ्रॉम माउंटेन कंसेप्ट से प्रभावित होकर इन दिनों कुल्लू की तीर्थन घाटी में रहकर अपनी नौकरी कर रही है। अर्चना के मुताबिक दिल्ली में कोरोना से डर का माहौल है और वह पिछले एक साल से घर के अंदर रहकर ही वर्क फ्रॉम होम कर रही थी। लेकिन वर्क फ्रॉम माउंटेन के कंसेप्ट को सुनने के बाद जब वह हिमाचल पहुंची तो उनके जीने का नजरिया ही बदल गया। यहां की खुली वादियों में वह न केवल साफ हवा और स्वच्छ जल से प्रभावित है बल्कि अपने ऑनलाइन नौकरी के साथ-साथ हिमाचल के तरह-तरह के व्यंजनों का भी आनंद ले रही हैं।

दूसरी ओर कुल्लू घाटी में वर्क फ्रॉम माउंटेन के कंसेप्ट को शुरू करने वाले पर्यटन कारोबारी अंकित सूद का कहना है कि ये कंसेप्ट महानगरों में बड़ी-बड़ी कम्पनियों में काम कर रहे उन लोगों के लिए संजीवनी से कम नहीं है जो कोरोना के कारण लम्बे समय से वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं और बंद कमरे की इस जिंदगी को छोड़कर खुली आबोहवा में विचरन करना चाहते हैं। अंकित सूद का कहना है कि दिवालियेपन के कगार पर पहुंच चुके घाटी के अधिकांश पर्यटन व्यवसायियों को इस नए कंसेप्ट से काफी उम्मीदें हैं क्योंकि पिछले कुछ अरसे से पर्यटक कुल्लू घाटी में अलग-अलग स्थानों पर 15 दिनों से लेकर छह महीने तक की बुकिंग कर वर्क फ्रॉम माउंटेन कंसेप्ट को अपना रहे हैं। बहरहाल कोरोना महामरी ने जीने और काम करने दोनों का तरीका बदल डाला है। ऐसे में उम्मीद है कि हिमाचल के पर्यटन उद्योग को वर्क फ्रॉम माउंटेन कंसेप्ट से जल्द ही फिर से पंख लगेंगे।