हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

शिमला, 24 अप्रैल। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला जिला की कोटी वन रेंज में 416 वृक्षों के अवैध कटान के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए वर्ष 2015 से 2018 के बीच जिम्मेवार रहे 16 अधिकारियों और कर्मचारियों से 34,68,233 रुपए की वसूली का फैसला सुनाया है। ये पैसा दो वन अरण्यपालों, दो डीएफओ, तीन सहायक, दो रेंज वन अधिकारियों, 6 ब्लॉक अधिकारियों और एक फॉरेस्ट गार्ड से वसूला जाएगा। ये सभी कर्मचारी व अधिकारी वर्ष 2015 से 2018 के बीच शिमला जिला की कोटी वन रेंज के कोटी फॉरेस्ट ब्लॉक की भलावग बीट से जुड़े रहे थे। अदालत ने इन सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को 27 मई को हाईकोर्ट में उपस्थित होने का अवसर भी दिया है ताकि इस वसूली के संबंध में उनके सेवा रिकॉर्ड में प्रविष्टि होने से पहले वह अदालत के सामने अपना पक्ष रख सकें।

इस मामले पर आज  हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एल नारायण स्वामी और न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा की खंडपीठ में सुनवाई हुई। खंडपीठ ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए इस पर जनहित याचिका के तौर पर सुनवाई की।

अदालत को सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा नियुक्त अदालत मित्र ने बताया कि संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों की उनकी सेवा शर्तों के अनुसार ड्यूटी बनती थी कि वह उनके अधीन आने वाली वन रेंज की शत प्रतिशत निरीक्षण करें तथा वहां किसी भी प्रकार के अवैध गतिविधि का पता चलने पर कार्रवाई करें। लेकिन कोटी वन रेंज में हुए 416 पेड़ के अवैध कटान के मामले में वन विभाग ने उक्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए रैंक में सबसे नीचे के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की तथा निशाना बनाया।

प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता ने अदालत को सूचित किया कि तीन अधिकारी अवैध कटान के इस मामले को अपने वरिष्ठ अधिकारियों के ध्यान में नहीं लाए। महाधिवक्ता ने बताया कि ये 416 पेड़ एक स्टोन क्रशर मालिक भूपराम ने अवैध तौर पर काटे थे और उस पर 3468233 रुपए का मुआवजा लगाया गया था जिसमें से अब सिर्फ 4 लाख रुपए की वसूली शेष है।

अदालत ने इस मामले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रदेश सरकार को काटे गए पेड़ों की लकड़ी की कीमत वसूलनी चाहिए थी लेकिन इन पेड़ों की कीमत का मूल्यांकन नहीं किया जा सका क्योंकि ये जीवनदायी ऑक्सीजन देते हैं। अदालत ने कहा कि 100 साल पुराने इन पेड़ों के अवैध कटान के लिए जिम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जरूरी है क्योंकि पेड़ों की इस तरह की अवैध कटाई की भरपाई किसी भी तरीके से नहीं की जा सकती।