नाहन 30 नवम्बर :- एक ओर जहां श्री रेणुका जी मेला मां रेणुका जी झील और परशु तालाब के अस्तित्व को लेकर संकट का सायरन बजा चुका है वही मेले का अंतरराष्ट्रीय दर्जा किसी भी मायने में एक स्थानीय मेले से अधिक नहीं है। जबकि अंतरराष्ट्रीय दर्जा प्राप्त श्री रेणुका जी मेला ना केवल करोड़ों की इनकम जनरेट कर सकता है बल्कि धार्मिक महत्वत के चलते देश सहित विदेशी धार्मिक पर्यटकों को भी आकर्षित कर सकता है। मौजूदा समय श्री रेणुका जी झील के अस्तित्व पर लंबे समय से बड़ा संकट भी जारी है।वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर नरेंद्र मीणा के द्वारा वर्ष 2010 में प्रदेश की अन्य झीलों सहित श्री रेणुका जी झील का गहन अध्ययन किया गया था। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर नरेंद्र मीणा के अनुसार, यह झील काफी संकट की स्थिति में है। उन्होंने यह भी बताया था कि इस झील की अधिकतम गहराई 13 मीटर और दूसरी ओर केवल 8 मीटर ही रह गई है। अब यदि बात की जाए धार्मिक महत्व से इसके संरक्षण की तो इसमें अब एक बड़ा और कड़ा निर्णय लेने की जरूरत है। इस प्राकृतिक झील को सबसे ज्यादा नुक्सान मेले के दौरान ही होता है।ऐसे में अब यह जरूरत महसूस की जा रही है कि झील के नजदीक कुरजा पवेलियन में मेले के दौरान लगाए जाने वाली दुकानें गिरी नदी के बेसिन में शिफ्ट की जानी चाहिए। वही अंतरराष्ट्रीय दर्जा के तहत इसका धार्मिक महत्व और अधिक परिष्कृत होना जरूरी है। मेले के दौरान प्रमुख पालकियों के साथ आने वाले पुजारियों का कहना है कि इस मेले में मां रेणुका जी और भगवान परशुराम जी की ओर से प्रदेश के सभी देवी देवताओं को निमंत्रण दिए जाने चाहिए। अब यदि इस मेले के दौरान प्रदेश के अन्य देवी-देवता कुब्जा पवेलियन में सजाए जाते हैं तो यहां का नजारा भव्य हो जाएगा।श्री रेणुका जी विकास बोर्ड से जुड़े माता राम आदि का कहना है कि यदि प्रदेश के अन्य देवी-देवता यहां आते हैं तो धार्मिक पर्यटकों की संख्या भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगी। यही नहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ मेले में आने वाली भीड़ जो झील के आसपास जंगल आदि में शौच करती हैं उससे भी निजात मिल जाएगी। देवी-देवताओं के एक स्थान पर दर्शनार्थ पहुंचने पर लोग खुद ब खुद आसपास गंदगी फैलाने से गुरेज करेंगे। वही मेले के दौरान आयोजित होने वाली सांस्कृतिक संध्या व अन्य गतिविधियां सहित तमाम दुकानें गिरी नदी के बेसिन में लगनी चाहिए।अब यदि सांस्कृतिक संध्या व तमाम दुकानें गिरी नदी के बेसिन में लगती है तो ना केवल प्रशासन व पुलिस प्रशासन की सर दर्दी कम होगी बल्कि मेले के दौरान ट्रैफिक समस्या से भी निजात मिल जाएगी। गिरी नदी का बेसिन इतना बड़ा है कि यहां पर सैकड़ों वाहन पार्क भी किए जा सकते हैं। नदी के बेसिन में टेंटिंग की व्यवस्था कर लोगों को ठहरने के लिए भी उचित स्थान मिल सकता है। बड़ी बात तो यह है कि नदी के बेसन में यदि तमाम वाणिज्य गतिविधियां की जाती है तो भारी भरकम मूल्यों में की जाने वाली प्लाट्स की नीलामी से भी लोगों को राहत मिलेगी।1000-2000 रूपए में नदी का बेसिन छोटे स्थानीय दुकानदारों और किसानों को भी बड़ी राहत देगा। यही नहीं मेले के दौरान फैलने वाला प्रदूषण बरसातों के दिनों में खुद-ब-खुद साफ भी हो जाएगा। जिला सिरमौर के बुद्धिजीवी वर्ग का भी मानना है कि श्री रेणुका जी मेले को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने को लेकर अब बड़े बदलाव की भी जरूरत है। वही यदि इस झील के प्राचीन रूप को वापिस अस्तित्व में लाने की बात की जाए तो वाडिया इंस्टीट्यूट इसके लिए रामबाण साबित होगा।इसकी बड़ी वजह 2010 में डॉक्टर मीणा के द्वारा कई दिन तक की गई झील की रिसर्च है। डॉक्टर मीणा का कहना है कि सबसे जरूरी है इस झील से गाद को निकालना। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस झील को लेकर रिसर्च किया है जिसमें इस झील को पुनः उसके प्रारूप में लाने के भी वैज्ञानिक तरीके निकाले गए हैं। अब सवाल यह उठता है कि यदि प्रदेश सरकार इस पवित्र झील के संरक्षण को लेकर गंभीर होती है तो निश्चित ही उन्हें वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिसर्च का सहारा लेना ही होगा।यही नहीं सरकार व प्रशासन यदि इस मेले के आयोजन को लेकर आमूलचूल परिवर्तन करता है तो निश्चित ही प्रदेश की जीडीपी के लिए यह मेला और धार्मिक स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगा। बरहाल, यदि पूरे प्रदेश के देवी-देवता मां रेणुका जी और भगवान परशुराम जी के बुलावे पर इस ऐतिहासिक धार्मिक स्थल पर आते हैं तो निश्चित रूप से इसे बड़ी उपलब्धि माना जाएगा।अब यदि इस मेले से होने वाली आमदनी की बात की जाए तो इस बार यह आंकड़ा केवल 79 लाख रुपए तक ही सिमटकर रह गया है। जबकि इस मेले के आयोजन में करीब 61 लाख रुपए का खर्चा आया। प्रशासन से प्राप्त जानकारी के अनुसार मेले में इस वर्ष तीन लाख के आसपास लोग आए थे। यहां यह भी बताना जरूरी है कि नवरात्रों में लगने वाले मां बाला सुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर में एक करोड़ से भी अधिक की इनकम हो जाती है।वही, उपायुक्त जिला सिरमौर आरके गौतम का कहना है कि इस विषय को लेकर पुजारियों से बात की जाएगी। उन्होंने कहा कि यह केवल झील नहीं बल्कि धार्मिक भावना के अनुसार इसे मां का दर्जा मिला हुआ है। उन्होंने कहा कि इस पवित्र रेणुका झील और भगवान परशुराम जी के तालाब के संरक्षण को लेकर निश्चित रूप से महत्वपूर्ण प्रयास किए जाएंगे।