हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का सुक्खू सरकार को बड़ा झटका अदालत ने हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराते हुए खारिज किया

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का सुक्खू सरकार को बड़ा झटका अदालत ने हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराते हुए खारिज किया

शिमला, 05 मार्च। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराते हुए इसे खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट के समक्ष विद्युत उत्पादन से जुड़े भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने याचिकाएं दायर की थी। न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने 39 याचिकाकर्ता कंपनियों की याचिकाओं को स्वीकारते हुए अधिनियम के प्रावधानों को खारिज कर दिया। अदालत ने प्रदेश सरकार को उक्त अधिनियम के रद्द किए गए प्रावधानों के तहत उगाही गई राशि को चार सप्ताह के भीतर वापिस करने के आदेश भी दिए हैं। अदालत ने कानून को निरस्त करते हुए इसके तहत बनाए गए नियमों को भी रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत प्रदेश सरकार इस तरह के कानून बनाने की शक्तियां नहीं रखती। एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने दलील दी थी कि प्रदेश सरकार संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत उस पानी पर टैक्स नहीं लगा सकती जिसका उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाना हो। प्रदेश सरकार केवल उत्पादित बिजली पर ही टैक्स अथवा सेस लगाने की शक्तियां रखती है। केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 13 फीसदी बिजली मुफ्त देती हैं। इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है। अदालत को बताया गया था कि 25 अप्रैल 2023 को भारत सरकार ने पाया था कि कुछ राज्यों द्वारा भारत सरकार के उपक्रमों से सेस वसूला जा रहा है। भारत सरकार ने राज्यों के सभी मुख्य सचिवों को हिदायत दी थी कि भारत सरकार के उपक्रमों से वाटर सेस न वसूला जाए। आरोप है कि इसके बावजूद भी हिमाचल की सुक्खू सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों की अनुपालना नहीं कर रही है। इससे पहले प्रदेश में निजी जल विद्युत कंपनियों ने भी हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी थी। निजी पन विद्युत कंपनियों ने आरोप लगाया था कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाया जाना संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।