शिमला. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में चल रही सरकार निर्णय लेने और फिर उसे पलटने को लेकर सवालों में हैं। सरकार के कई फैसले ऐसे हुए जिसे विपक्ष के विरोध के बाद सरकार को पलटना पड़ा या जनता के विरोध के बाद पलटना पड़ा। कोरोना संकट काल में आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार ने खजाना भरने के लिए कुछ निर्णय लिए जिसे बाद में पलटना पड़ा। जिससे सरकार की निर्णय लेने की क्षमता और सूझबूझ पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल यह है कि सरकार के अफसर कैसी पॉलिसी बना रहे हैं सियासी रुप पर सरकार पर भारी पड़ रही है और सरकार ऐसे निर्णयों को वापस ले रही है। सरकार ने पहला फैसला लिया कि आयकर देने वाले लोगों को सरकार का सब्सिडी वाला राशन नहीं मिलेगा। यह तय है कि इस निर्णय से सरकार को करोड़ों रुपए की बचत होनी थी लेकिन यह निर्णय प्रदेश के एक बड़े वर्ग को प्रभावित कर रहा है। खासतौर से प्रदेश के लाखों कर्मचारी वर्ग प्रभावित हो रहे थे, जो एक बड़ा वोट बैंक भी है। सरकार के इस निर्णय का विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने सड़क से लेकर सदन तक विरोध किया। सरकार को लगा कि वाकई यह निर्णय गलत ले लिया गया है। जिसके कारण सरकार ने यह निर्णय वापस ले लिया और सभी को सब्सिडी वाला राशन प्रदान करने का निर्णय लिया। इसी तरह सरकार ने खजाना भरने के लिए गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन फीस बढ़ाने का निर्णय कैबिनेट में लिया। जिसके तहत नई गाड़ी खरीदने पर रजिस्ट्रेशन की फीस लाखों में हो गई। इसका भी विपक्ष के साथ जनता ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से अपना विरोध दर्ज किया। कांग्रेस के नेता मुकेश अग्निहोत्री और राजेंद्र राणा ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया। अंतत सरकार ने यह निर्णय ही वापस लेकर रजिस्ट्रेशन फीस को कम कर दिया। सरकार ने बिजली के मीटर को लगाने की फीस भी 10 हजार से अधिक कर दी जिसका विरोध होने पर यह निर्णय भी वापस ले लिया। इस तरह सरकार लगातार निर्णय ले रही है और जनता के विरोध के बाद वापस ले रही है। ऐसे पर सरकार के निर्णयों पर सवाल उठना लाजमी है। सवाल यह है कि सरकार यह निर्णय क्या जल्द बाजी में और बिना किसी अध्ययन के ले रही है। निर्णय लेते समय यह तो सोचना ही होगा कि सरकारी खजाना भरने के साथ-साथ इन निर्णयों का प्रदेश की जनता के बीच क्या प्रभाव पड़ना है। बिना प्रभाव का अध्ययन किए निर्णय लेना सरकार को सियासी तौर पर भी महंगा पड़ रहा है। इसी तरह सरकार ने बहुत बड़ा प्रशासनिक फेरबदल किया, जिसमें प्रदेश के 7 जिलों के डीसी बदलने के साथ 22 आईएएस अफसरों को बदला। लेकिन अधिकारियों के असंतुष्ट होने पर 4 दिन बाद ही फेरबदल के नए आदेश जारी किए और फिर कई अधिकारियों के विभागों को बदल दिया। इस पर भी सरकार पर सवाल उठे कि आखिर क्या कारण है कि सरकार को हर बाद निर्णय बदलने पड़ रहे हैं।