नदियों में लकड़ी बहने का मामला

नदियों में लकड़ी बहने का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान, जबाब तलब
ज्ञान ठाकुर
शिमला, 04 सितम्बर(हप्र)।
आपदा ग्रस्त हिमाचल में रावी व ब्यास नदियों में भारी मात्रा में लकड़ी के बहते देखे जाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया है। न्यायालय ने इस मामले में हिमाचल, केंद्र सरकार व कुछ अन्य राज्यों से जवाब तलब किया है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्ट्या यह पेड़ों के कटान का मामला लगता है। अदालत ने नदियों में बह रही लकड़ी के वीडियो भी देखे तथा इसे गंभीर मामला बताते हुए तीन सप्ताह में केंद्र, हिमाचल व अन्य राज्यों से रिर्पोट तलब की है।
पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं के साथ साथ बीते दिनों भारी मात्रा में लकड़ी के ब्यास नदी में बह कर आने के बाद पंडोह डैम में जमा होने के मामले में एआईसीसी प्रवक्ता कुलदीप राठौर ने भी इसकी जांच की मांग की थी।
गौरतलब है कि हिमाचल बीते तीन सालों से लगातार प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है। आपदा राहत के मुद्दे पर तो प्रदेश में सियासत चरम पर है, मगर बीते जून माह में कुल्लू जिला के गडसा व सैंज वली में बादल फटने के बाद ब्यास में भारी मात्रा में लकड़ी बह कर आई। बीते दो सितंबर को आपदा ग्रस्त चंबा जिला में भी रावी नदी में भारी मात्रा में लकड़ी तैरती हुई देखी गई। सर्वोच्च न्यायालय ने इन मामलों का संज्ञान लिया है।
प्रदेश में ग्रीन फेलिंग पूरी तरह से बंद है। हरे पेड़ों के कटान पर रोक के बावजूद नदियों में भारी मात्रा में लकड़ी के लट्ठों के तैरते देखा जाना सवाल खड़े कर रहा है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पंडोह में लकड़ी के लट्ठे के तैर कर पहुंचने के मामले की सीआईडी जांच के आदेश दिए थे। रावी के मामले में वन विभाग का कहना है कि यह लकड़ी भारी बारिश से उखडऩे के बाद नदी में पहुंची है। मगर सोशल मीडिया में इसे फिल्म पुष्पा के चंदन तस्कर से जोड़ कर देखा जा रहा है।
बहरहाल अब इस मामले में सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायरे देना है। मामला अवैध कटान का है अथवा कुछ और यह तो जांच रिर्पोट के बाद साफ होगा। मगर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इसाक संज्ञान लेने से साफ है कि मामला गंभीर है। कुछ लोग भारी बारिश से हो रहे भूस्खलन की वजह भी पेड़ों के कटान को मान रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण में लगी संस्था हिमालय नीति अभियान के गुमान सिंह भी इस मामले की जांच के पक्षधर हैं।