मनोरोगी को चंद घंटों में मिलवा दिया परिवार से

शिमला, 16 मई। कोरोना के खतरनाक दौर में जब सगे रिश्ते भी तार-तार हो रहे हों, कुछ लोगों की इंसानियत और दूसरों की मदद करने का जज्बा समाज को प्रेरणा देता है। ऐसा ही उदाहरण दो महिलाओं ने पेश करके एक मनोरोगी युवा को चंद घंटों के भीतर उसके परिवार से मिलवा दिया।

उमंग फाउंडेशन की सदस्य और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर सवीना जहाँ तथा उनकी पड़ोसी ममता शर्मा को यह युवक भूखा प्यासा लोअर टूटू में एक दुकान के सामने खड़ा मिला था। पूछने पर वह अपना नाम पता कुछ भी नहीं बता पाया। उन दोनों को लगा कि वह मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है।

उन्होंने उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव को सूचित किया। श्रीवास्तव ने तुरंत बालू गंज थाने के एसएचओ को फोन कर जतोग चौकी से हेड कांस्टेबल महेश के नेतृत्व में पुलिस टीम भिजवाई साथ ही एक एंबुलेंस को भी भेजा।

पुलिस टीम उसे आईजीएमसी अस्पताल ले गई जहां उसकी देखरेख शुरू की गई। अत्यंत संवेदनशील कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर क्षितिजा ने सबसे पहले उसका कोविड-19 टेस्ट कराया जो नेगेटिव निकला। उसके बाद उन्होंने युवक को मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टरों को दिखाया जिन्होंने देखते ही उसे पहचान लिया।

जतोग चौकी के हेड कांस्टेबल महेश ने मनोचिकित्सा विभाग से युवक के परिवार वालों का नंबर लिया और उसके भाई ललित राणा को फोन कर अस्पताल बुला लिया। ललित ने बताया कि वह शोघी के रहने वाले हैं और उनका भाई तीन दिन से घर से गायब था। उन्होंने कहा कि वह  2014 में दसवीं कक्षा का विद्यार्थी था और तभी से बुरी संगत में फंसकर नशा करने लगा था। इसके बाद उसकी पढ़ाई छूट गई।

ललित राणा का कहना है कि उसने 7 साल पहले अपने भाई को ब्यूलिया में एक निजी नशा निवारण केंद्र में भी भर्ती कराया था। लेकिन वह पूरी तरह ठीक नहीं हो सका। इसके बाद वह आईजीएमसी के मनोचिकित्सा विभाग में भी भर्ती रहा। आजकल उसका इलाज बैरियर के पास राज्य मानसिक रोग अस्पताल से चल रहा है। उन्होंने भाई के प्रति संवेदनशीलता दिखाने के लिए सभी का धन्यवाद किया।

सवीना जहां और ममता शर्मा का कहना है की किसी भी बेसहारा इंसान को देख कर उसकी उपेक्षा नहीं कर देनी चाहिए। उनका कहना है कि छोटे-छोटे प्रयासों से किसी की जिंदगी को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।