शिमला 11 जून
मनरेगा ग्रामीण भारत के आर्थिक बदलाव के लिए क्रांतिकारी व कारगर कदम साबित हुआ है। यह बात प्रदेश कांग्रेस प्रभारी रजनी पाटिल ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कानून 2005 (मनरेगा) ने काफी हद तक ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर व स्वावलंबी बनाया है। हालांकि मात्र विरोध के लिए विरोध करने वाली केंद्र सरकार राजनीतिक दुर्भावना से इस आम आदमी के लिए बने कानून को कमजोर करने के लिए इसकी निरंतर आलोचना करती रही है, लेकिन अंतत: अब इसकी सत्यता व सार्थकता को देखते हुए अब मोदी सरकार को इसे स्वीकारना पड़ा है। कांग्रेस सरकार द्वारा स्थापित की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ मनरेगा समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े पिछड़े व वंचितों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के सबूत के तौर पर कारगर साबित हुआ है। 2 सितंबर 2005 में पारित मनरेगा कानून समाज की समस्याओं को समझने व परखने के बाद भारतीय ग्रामीण समाज द्वारा लगातार उठाई जा रही समस्याओं व मांगों का परिणाम व प्रमाण है। कांग्रेस पार्टी ने इसे ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अमलीजामा पहनाया था। जो कि 2004 में कांग्रेस पार्टी की घोषणा पत्र का संकल्प भी बना था। यूपीए सरकार ने ग्रामीण भारत की जरूरतों के अनुरूप इसे लागू कर दिखाया था। जो कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों तक रोजगार की गारंटी का सबूत साबित हुआ था, लेकिन मात्र विरोध व राजनीतिक दुर्भावना से मनरेगा की लोकप्रियता से विचलित मोदी सरकार ने इस कारगर योजना को विफलता का जीवित स्मारक करार देते हुए इस योजना को दबाने व बिगाडऩे का भरपूर प्रयास किया है। यह दीगर है कि अब कोविड-19 के संकट में मनरेगा की उपयोगिता के कारण इसे लागू करने पर विवश होना पड़ा है। रजनी पाटिल ने कहा कि मैं समझती हुं कि यह योजना कोविड-19 संकट के दौरान हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है। रजनी पाटिल ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग की है कि अब मनरेगा को जनता की जरूरत व मांग के अनुरूप प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 200 दिनों के लिए लागू किया जाए ताकि कोविड संकट में फंसी जनता को जहां एक ओर इसका आर्थिक लाभ मिल सके, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों का मूलभूत शुरुआती विकास ढांचा विकसित हो सके।