शिमला. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरती जा रही है। कभी स्वास्थ्य विभाग का घोटाला तो कभी जमीन खरीदी का आरोप। हर बार भ्रष्टाचार का मामला सुर्खियों में आता है और मंत्री या नेता आरोपों से घिर जाते हैं। बिजिलेंस जांच शुरु हो जाती है और मामला हाईकमान तक पहुंच जाता है। मंत्रियों के दिल्ली दौरे शुरु हो जाते हैं, यह सब किस लिए होता है, यह परदे के पीछे चल रही सियासी हलचल का नतीजा ही कहा जा सकता है। भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच भाजपा और सरकार के मंत्री ईमानदार सरकार का दाबा करते हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब सरकार में लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और आरोपों के घेरे में पहले भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष आए और अब एक मंत्री। तब ईमानदार सरकार का दाब कितना सही माना जा सकता है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पहले भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के दाबे करते रहे और अब भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की बात कह रहे हैं। लेकिन जीरो टालरेंस के बीच भी भ्रष्टाचार के मामले आ रहे हैं।
प्रदेश में भाजपा सरकार बनने और जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही सरकार और पार्टी का दाबा रहा है कि प्रदेश को ईमानदार सरकार और मुख्यमंत्री मिला है। लेकिन सरकार के ढाई वर्ष के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं। एक मामला आयुर्वेदिक विभाग के महंगे दामों पर उपकरण खरीदने का सामने आया जिसमें कई अधिकारी और कर्मचारी सस्पेंड किए गए और कई के तबादले किए गए। जांच शुरु हुई लेकिन जांच में क्या निकला, अभी तक सार्वजनिक नहीं हो सका है। इसी प्रकार कोरोना संकट काल में पीपीई घोटाला सामने आ गया। जिसमें भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष का नाम भी आया और प्रदेशाध्यक्ष को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद अब जमीन खरीदी मामले में सरकार के एक मंत्री आरोपों से घिर गए हैं। जमीन खरीदी का आरोप पूर्व मंत्री मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने लगाया तो कांग्रेस नेताओं ने भी सरकार से जवाब मांगा। सरकार ने जवाब तो नहीं दिया लेकिन मंत्री ने जवाब देते हुए स्वीकार किया कि जमीन तो खरीदी है लेकिन उसमें कुछ भी गैर कानूनी नहीं है। वहीं अब जमीन खरीदी मामले की प्रारंभिक जांच बिजिलेंस ने शुरु कर दी और आरोपों से घिरी मंत्री दिल्ली दौरे पर हैं। जिससे राजनैतिक चर्चाएं तेज हैं लेकिन परदे के पीछे क्या चल रहा है, यह अभी सियासत करने वाले नेता ही जानते हैं। आरोपों से घिरी मंत्री की कुर्सी बची रहे या चली जाए, यह मायने नहीं रखता, सवाल तो यह है कि भ्रष्टाचार से घिरी सरकार को ईमानदार कैसे कहा जाए। यह बात सच है कि मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति पर काम कर रहे लेकिन भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का दाबा अभी भी इंतजार कर रहा है।