पर्वत धारा योजना के तहत जल स्रोतों के जीर्णोद्धार के लिए 2.76 करोड़ व्यय

पर्वत धारा योजना के तहत जल स्रोतों के जीर्णोद्धार के लिए 2.76 करोड़ व्यय

शिमला, 2 मई। हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में जल स्रोतों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सरकार ने जल स्रोतों के संवर्धन तथा भू-जल में वृद्धि के लिए ‘पर्वत धारा योजना’ आरम्भ की है। यह योजना वन विभाग द्वारा 20 करोड़ रुपये व्यय कर वन क्षेत्रों में लागू की जा रही है। इस योजना को प्रदेश में लाहौल-स्पीति एवं किन्नौर जिलों को छोड़कर शेष जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसमें जल शक्ति विभाग नोडल विभाग के तौर पर कार्य कर रहा है। हिमाचल प्रदेश में दो-तिहाई भू-भाग में वन है तथा लगभग 27 प्रतिशत भू-भाग हरित आवरण से ढका है इसलिए पर्वत धारा योजना के क्रियान्वयन में वन विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका है।

इस योजना के अन्तर्गत विलुप्त हो रहे जल स्रोतों के जीर्णोद्धार तथा ढलानदार खेतों में सिंचाई उपलब्ध करवाने के लिए वन विभाग द्वारा छोटे-बड़े जल संचायन ढाचों का निर्माण कार्य आरम्भ किया गया है। योजना के अन्तर्गत जल सग्रंहण, जलाशयों के निर्माण के साथ-साथ उनका रख-रखाव तथा प्रबन्धन किया जा रहा है। इन कार्यों से भू-जल स्रोतों के जीर्णोद्धार के साथ-साथ ग्रीष्म ऋतु में सिंचाई का भी प्रावधान सुनिश्चित होगा।

इस योजना के तहत वन विभाग ने वर्ष 2020-21 में दस वन मण्डलों में पायलट आधार पर कार्य आरम्भ किया है, जिसमें बिलासपुर, हमीरपुर, जोगिन्द्रनगर, नाचन, पार्वती, नूरपुर, राजगढ़, नालागढ़, ठियोग तथा डल्हौजी वन मण्डल शामिल हैं। इस योजना के तहत उपरोक्त वन मण्डलों में विभिन्न स्थानों पर छोटे-बड़े तालाबों की साफ-सफाई एवं रख-रखाव के कार्य किए गए तथा नए तालाबों, बांधों, दीवारों व भूस्खलन को रोकने के लिए चैक डैम, डंगे व दीवारों का निर्माण इत्यादि किया गया।

योजना के तहत वन विभाग ने वर्ष 2020-21 में 2.76 करोड़ रुपये व्यय किए गए, जिसमें लगभग 110 छोटे-बड़े तालाब, 600 विभिन्न प्रकार के चैक डैम व चैक वाल, 12 हजार कन्टूर ट्रैंच के साथ-साथ पौधरोपण इत्यादि के कार्य शामिल हैं। आगामी वर्षों में योजना के तहत अन्य वन मण्डलों को भी शामिल किया जाएगा तथा जल एवं मृदा संरक्षण के कार्यों के अतिरिक्त पौधरोपण जैसे कार्यों पर बल दिया जाएगा। पर्वतों में जल धारा की निरन्तरता को बनाए रखने में ऊंची चोटियों पर बर्फ तथा वनों में जल संरक्षण की आवश्यकता है।

इस दिशा में जलवायु परिवर्तन को रोकने अथवा उसकी गति को धीमी करने की आवश्यकता है, जो पौधरोपण, वन संरक्षण तथा वनों की स्थिति में सुधार जैसे कार्यों के द्वारा किया जा सकता है। वनों में मृदा एवं जल संरक्षण कार्यों से भी वनों के आवरण में सुधार लाया जा सकता है। इन सभी कार्यों के द्वारा भूमि में जल को अधिक समय तक रोकर, जल स्तर को बढ़ाया जा सकेगा तथा प्राकृतिक स्रातों के जीर्णोद्धार से स्थानीय लोगों को सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता एवं निरन्तरता को भी बनाया जा सकेगा।