छात्र के व्यवहार में सुधार लाने के मकसद से शिक्षक द्वारा दिया जाने वाला हल्का दण्ड आपराधिक कृत्य में नहीं आँका जा सकता। प्रदेश हाईकोर्ट ने एक एहम निर्णय में व्यवस्था दी है कि शिक्षक छात्र को हल्का दण्ड दे सकता है लेकिन यह दण्ड भविष्य में छात्र के शारीरिक और मानसिक विकास में किसी तरह से बाधा नहीं बनना चाहिए। अध्यापक अगर किसी छात्र को उसके विकास के लिए शारीरिक तौर पर चोटिल करता है तो उस परिस्थिति में अध्यापक के विरुद्ध आपराधिक मामला चलाया जा सकता है।
यह व्यवस्था न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने राजधानी के एक प्रतिष्ठित स्कूल की अध्यापिका के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी और अपराधिक मामले को निरस्त करते हुए दी। कोर्ट ने कहा कि पाठशाला में बच्चों को पढाई के लिए अभिभावक बिना किसी शर्त के स्कूल प्रबन्धन के हवाले छोड़ते हैं। इस कारण वहाँ उनकी देख रेख और पढाई के लिए तैनात स्टाफ बच्चों के हित के लिए माता पिता की तरह कार्यवाही कर सकते हैं। हर घर में माता पिता भी बच्चों की बेहतरी के लिये गलती के लिए दण्डित करते रहते हैं ताकि बच्चा गलती न करे।
अदालत के समक्ष रखे गये तथ्यों के अनुसार 24 सितम्बर 2012 को दो छात्राओं को प्रार्थी अध्यापिका ने कक्षा में दण्ड स्वरूप दो दो थपड मारे। अध्यापिका की मार से आहात हो कर इन 12-12 वर्षीय छात्रों ने स्कूल के नजदीक काली ढांक से छलांग लगा दी थी जिससे उनकी मौत हो गयी थी। पुलिस ने इस मामले में स्कूल की प्रधानाचार्या और प्रार्थी अध्यापिका के विरुद्ध आत्महत्या के लिए उकसाने के इलावा बाल संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया। पुलिस ने आत्महत्या करने के उकसाने के बारे में साक्ष्यों के आभाव में स्कूल की प्रधानाचार्य और अध्यापिका को छोड़ दिया जबकि बाल संरक्षण अधिनियम के तहत अध्यापिका के विरुद्ध मामला चलाया।
प्रार्थी ने अदालत में दलील दी कि स्कूल में एक अभिभावक की भूमिका अदा करते हुए उसने बच्चों को डांटा था जो कि उनके भविष्य की बेहतरी के लिए था और गलती करने पर बच्चों का डांटा जाना जरूरी भी है। घर पर भी माता पिता अपने बच्चों को हल्की फुल्की यातना देते हैं।प्रार्थी द्वारा बच्चों को गलती पर डांट लगाना अपराधिक मामले की परिभाषा में नहीं आता । इसलिए इस मामले को रद्द किया जाये।कोर्ट ने प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए उसके विरुद्ध चल रहे अपराधिक मामले को रद्द करने का निर्णय सुनाया।