कोरोना काल में मीडिया की सही छवि बरकरार रखना बड़ी चुनौती : अरूण आनंद
शिमला, 27 मई। कोरोना काल में मीडिया को मिलने वाले आर्थिक संसाधनों का भारी ह्रास हुआ है। मीडिया स्वयं को बचाने के लिए सरकार से मिलने वाले संसाधनों पर ही अधिक निर्भर है। ऐसे में सरकारी स्तर पर होने वाली कमियों को पूरी तत्परता से आम जनता तक ले जाने में मीडिया के लिए चुनौती बनता जा रहा है। इसके साथ पत्रकारों के लिए न तो मीडिया संस्थानों के मालिक और न ही सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा के लिए काम किया गया है। इससे पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रतिभाशाली लोगों की कमी होती जा रही है। यह विचार आदि पत्रकार देवर्षि नारद जयन्ती के अवसर पर विश्व संवाद केन्द्र शिमला द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय वेबिनार में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरुण आनंद ने व्यक्त किये।
अरुण आनंद ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता में भी कोरोना के कारण आर्थिक दबाव देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण राष्ट्रीय पत्रकारिता से लेकर क्षेत्रीय स्तर की पत्रकारिता में भारी परिवर्तन आया है। अब मीडिया संस्थानों की अपने संस्थानों को चलाने के लिए सरकारी तंत्र पर निर्भरता अधिक हो गयी है जिस कारण उनकी व्यक्तिगत छवि को सही रखना बेहद मुश्किल हो गया है। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यवसाय वाद के कारण आए पतन पर चिंता व्यक्त की।
कोरोना काल में पत्रकारों की नौकरियों पर आए संकट का जिक्र करते हुए उन्होंने इसके लिए संस्थागत नियमन की आवश्यकता पर बल दिया। इसके साथ ही उन्होंने पत्रकारों की समस्याओं के समाधान के लिए संपादक के महत्व के बारे में बताया। उनका कहना था कि 1970 के दशक के बाद संपादक की भूमिका अखबारों में केवल सरकार और मीडिया समूहों के मालिकों को खुश करने तक ही सीमित रह गयी है। उन्होंने सामाजिक सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए पत्रकार जागरूकता पर बल दिया।
उनका कहना था कि आज पत्रकारों को आर्थिक और सामाजिक स्तर के उत्थान के लिए विचारधाराओं के द्वन्द्व से उपर उठकर एक समूह के रूप में खड़ा होना होगा। उन्होंने संस्थागत व्यवस्था के लिए सरकारी तंत्र के नियमन का विरोध करते हुए कहा कि सरकार के हस्तक्षेप से इसका व्यापक दुरूपयोग होगा और जनता के लिए आखिरी सहारा बन रहा यह लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ भी ध्वस्त हो जाएगा।