केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ किसान सभा का प्रदर्शन

आज अखिल भारतीय किसान सभा के आह्वान पर हिमाचल प्रदेश में हिमाचल किसान सभा के नेतृत्व में 5 जून को केंद्र की सरकार द्वारा आनन फानन में लाये गए किसान विरोधी तीन अध्यादेशों को वापस करने की मांग को लेकर इनकी प्रतियां जलाई गई। शिमला में किसानों  महिलाओं के एक विरोध प्रदर्शन में किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ कुलदीप सिंह तंवर ने इस कोरोना संकट के समय मोदी सरकार ने किसानों के साथ विश्वासघात करते हुए जल्दबाजी में ये अध्यादेश लाये हैं जिनके द्वारा बड़े व्यापारी  कॉरपोरेट को तो फायदा होगा लेकिन छोटे किसानों को अपने माल के उचित दाम नहीं मिलेंगे। इसलिए देश का किसान तब तक विरोध करेगा जब तक इनको वापस नहीं लिया जाएगा। इस मौके पर किसान सभाएवं महिला समिति के पदाधिकारी मौजूद रहे।

नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल के फैसले किसानों पर हमला और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का आक्रामक अनुसरण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनका मंत्रिमंडल किसानों, खेत मजदूरों और इन से जुडी अन्य गतिविधियों में लगे लोगों जैसे मछली पकड़ना, रेशम उत्पादन आदि की आय में हुए भारी नुकसान पर मौन है। सरकार अपने अनियोजित लॉकडाउन के  निर्णय के कारण उपजे संकट में किसानों की मदद के लिए कोई आय समर्थन और ऋण माफी योजना नहीं लाई । केंद्रीय कैबिनेट द्वारा  कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020′ और मूल्य आश्वासन पर किसान(बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश, 2020′ को मंजूरी देने का निर्णय संघीय सिद्धांतों के खिलाफ है और राज्य सरकारों के अधिकारों का उल्लंघन करता है। अध्यादेश किसानों को कृषि व्यवसायियों, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों की दया पर डाल देगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) के संशोधन से निजी खिलाड़ियों और कृषि व्यवसाय पर सभी विनियमन या नियंत्रण हट जाएंगे। हालांकि कृषि एक राज्य विषय है, लेकिन भविष्य में इन कार्यों पर राज्य सरकारों का कोई नियंत्रण नहीं होगा।

  • भाजपा सरकार का दावा है कि कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020′ राज्य कृषि उपज विपणन  कानूनों के तहत अधिसूचित बाजारों के भौतिक परिसर के बाहर अवरोध मुक्त अंतर-राज्य और अंतर-राज्य व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ावा देगा। एपीएमसी अधिनियमों को 1960 और 1970 के दशक में बड़े व्यापारियों एवं बड़े खरीदारों की एकाधिकार शक्तियों पर एक लगाम लगाने के लिए लाया गया था, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से अपनी आर्थिक शक्ति व अतिरिक्त-आर्थिक साधनों का उपयोग गरीब किसानों से कम कीमतों पर अनाज खरीदने के लिए किया था। हालांकि इन्हें हमेशा प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, लेकिन एपीएमसी अधिनियमों ने नीलामी की एक प्रणाली शुरू की, जिसे कृषि उत्पादों की खरीद में अधिक प्रतिस्पर्धा लाने के लिए डिज़ाइन किया गया था। व्यापारियों व बड़े खरीदारों को किसानों से सीधे अधिसूचित मंडियों के बाहर उपज खरीदने की अनुमति देने का मतलब होगा कि उपज को नीलामी के बिना बड़े व्यापारियों और गरीब किसानों के बीच द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से खरीदा जाएगा। ऐसी प्रणाली स्वाभाविक रूप से उन किसानों के हितों के खिलाफ पक्षपाती होगी जिन्हें लाभकारी कीमत  नहीं मिलेगी। मूल्य समर्थन अब उपलब्ध नहीं होगा और किसानों को विश्व बाजार की अस्थिर कीमतों के हवाले छोड़ दिया जाएगा, उन्हें कीमतों में गिरावट से होने वाले नुकसान का बोझ उठाना पड़ेगा जबकि उच्च कीमतों पर लाभ प्राप्त करने में वो असमर्थ होगें। यह विपणन में प्रतिबंध नहीं रहेगा जो किसानों के लिए संकट का कारण बनेगा; यहाँ बल्कि लाभकारी कीमतों की अनुपस्थिति में संकट को ओर गहरा  ले जाएगा।
  • आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बन जाएगा। विशेष रूप से वर्तमान समय में संकट के इस दौर में इन आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी को रोकने के लिए ईसीए सबसे महत्वपूर्ण कार्य था। सामान्य समय में भी, बड़े व्यापारियों के लिए खुदरा कीमतों में वृद्धि करने के लिए जमाखोरी जैसे व्यवहार व प्रयोग करना असामान्य नहीं है। ईसीए ऐसी प्रथाओं के खिलाफ मुख्य कानूनी साधन था। भाजपा सरकार का यह  दावा कि युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी स्थितियों में, इस तरह के कृषि खाद्य पदार्थों को एक ही सांस में विनियमित किया जा सकता है, यह इस बात का विरोधाभाषी है की यह एक मूल्य श्रृंखला की स्थापित क्षमता में  प्रतिभागी व एक निर्यातक की निर्यात की मांग पर स्टॉक सीमा लगाने से छूट रहेगी। सरकार का दावा है कि कोल्ड चेन, भंडारण, कृषि बुनियादी ढांचे और प्रसंस्करण उद्योगों के लिए निवेश को आकर्षित करने के लिए ईसीए में संशोधन किया जा रहा है, यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि कृषि-व्यवसाय और कॉर्पोरेट घरानों को कृषि पर कब्जा करने की अनुमति देना है। इसके साथ ही मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट कृषि-व्यवसायों की मांग और आवश्यकता के अनुसार किसानों को सदा के लिए गुलाम बना देगा। कोविद महामारी का इस्तेमाल कर भाजपा सरकार निजी क्षेत्र व विदेशी निवेश को कृषि में लुभाने के लिए कर रही है साथ ही किसानों के लिए आसान सुलभ वैज्ञानिक भंडारण सुविधाओं के नेटवर्क के निर्माण की अपनी जिम्मेदारी से अपने हाथ पीछें खिंच रही है।
  • मूल्य आश्वासन पर किसान(बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश, 2020′ से यह दावा किया जा रहा है कि, यह किसानों को प्रोसेसर, एग्रीगेटर, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ जुड़ने के लिए सशक्त करेगा, एक स्तरीय खेल के मैदान पर बिना किसी भी तरह के  शोषण के डर के। हालांकि, यह स्पष्ट है की इस के पीछें  का विचार, भूमि का समेकन, संविदा कृषि को प्रोत्साहित करना और कृषि भूमि को पट्टे पर कॉरपोरेट कंपनियों को दिया जाना है। बाजार की अस्थिरता के जोखिम को किसान से प्रायोजक पर स्थानांतरित करने का दावा निराधार है। किसानों को सशक्त बनाने के बजाय यह उन्हें खत्म कर देगा और बड़े जमींदारों और कृषि व्यवसायियों को उनकी कीमत पर मुनाफा कमाने में मदद करेगा। एसडीएम की विवादों के निपटारे की सभी शक्तियां अदालतों की शक्ति पर भारी पड़ेंगी। यह गरीब किसानों को जिस का बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ विवाद होगा नौकरशाही की दया पर डाल देगा। शिकारी कृषि व्यवसाय और कॉरपोरेट ताक़तें कृषि पर कब्ज़ा कर लेंगी व किसान तिल-तिल कर मरने पर मजबूर होगा और निश्चित तौर पर कृषि निगमीकरण सुनिश्चित किया जाएगा । यदि इस का आशय वास्तव में किसानों का सशक्तिकरण, संरक्षण और मूल्य आश्वासन है , तो अध्यादेश में मूल्य व मजदूरी की गारंटी के लिए कोई ठोस प्रावधान क्यों नहीं है?

अखिल भारतीय किसान सभा, सभी फसलों की सी2+50 प्रतिशत के अधर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटीकृत खरीद सुनिश्चित करने और सभी खेत मजदूरों के लिए  600 रुपये प्रतिदिन की न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाने की मांग करती रही है। किसान सभा, सभी गैर-कर दाता गरीबों के लिए  10,000 रुपये  प्रति माह की आय सहायता दिए जानें,  मनरेगा  के तहत बेरोजगारी भत्ते के रूप में कम से कम 300 / -रुपये प्रतिदिन दिए जाने, प्रधानमंत्री-किसान को बढ़ाकर 18,000 रुपये  प्रति वर्ष करने व पट्टेदार किसानों को भी इस में शामिल किए जाने, भूमिहीन, पट्टेदार, छोटे व मध्यम किसानों के लिए सम्पूर्ण कर्जा माफ़  करने, एफडीआई पर निर्भरत और  कॉर्पोरेट लूट को सुविधाजनक बनाने के बजाय सरकार को किसान और खेत मजदूरों  की सहकारी समितियों को बढ़ावा देकर सहकारी खेती सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाना की अपनी मांगो को दौहरती है।