शिमला में पानी और कूड़े के भारी बिलों के खिलाफ माकपा उतरी सड़कों पर
शिमला, 15 फरवरी। हिमाचल प्रदेश की राजधानी व पर्यटक नगरी शिमला में नगर निगम ने पानी और कूड़े के बिलों में जोरदार वृद्धि की है। कोरोना महामारी के चलते आर्थिक मंदी झेल रहे स्थानीय लोगों की जेबों पर इस वृद्धि से और आर्थिक बोझ बढ़ेगा। ऐसे में इस वृद्धि का विरोध भी आरंभ हो गया है। वामपंथी दल माकपा की स्थानीय कमेटी ने पानी और कूड़े के बिलों में भारी वृद्धि तथा शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था के निजीकरण के खिलाफ आज नगर निगम आयुक्त कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। पार्टी ने मांग की है कि सरकार व नगर निगम पानी व कूड़े के बिलों में की गई वृद्धि और शहर में पेयजल व्यवस्था के निजीकरण के निर्णय को तुरंत वापिस ले। पार्टी की मांग है कि ये कार्य पूर्व की भांति नगर निगम को सौंपा जाए क्योंकि 74वें संविधान संशोधन के अनुसार पेयजल व्यवस्था करना नगर निगम का दायित्व है।
माकपा नेताओं ने इस मौके पर आरोप लगाया कि भाजपा ने हमेशा ही बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी सुविधाओं के निजीकरण का समर्थन किया है। शिमला नगर निगम क्षेत्र में पेयजल व्यवस्था का निजीकरण भी भाजपा सरकार की ही देन है।
माकपा नेताओं का आरोप है कि पेयजल व्यवस्था के निजीकरण से निजी कंपनियों को मुनाफा होगा लेकिन उपभोक्ताओं को बेवजह अत्यधिक आर्थिक बोझ सहना पड़ेगा और पेयजल मूलभूत आवश्यकता न रहकर एक उपभोग की वस्तू रह जाएगी। उन्होंने कहा कि आज तक दुनिया में जहां भी पीने के पानी की व्यवस्था निजी कंपनी को दी गई है वह पूर्णत: विफल रही है और इससे केवल जनता पर आर्थिक बोझ ही डाला गया है। उन्होंने कहा कि पेयजल व्यवस्था के निजीकरण के खिलाफ माकपा, जनता और विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर आंदोलन करेगी और सरकार को इस निर्णय को रद्द करने के लिए मजबूर किया जाएगा। पार्टी ने आम जनता से अपील की है कि सरकार व नगर निगम की इन जनविरोधी नीतियों को पलटने के लिए संगठित होकर विरोध करें।