बेसहारा भटकती मनोरोगी महिला को मिला ठिकाना

शिमला, 22 मई। राजधानी शिमला की सड़कों पर दर-दर भटकती असहाय मनोरोगी महिला को आखिरकार इलाज और सुरक्षित ठिकाना मिल गया। यह संभव हुआ स्वयंसेवी संस्था उमंग फाउंडेशन के प्रयासों से। इस महिला की बदहाली देखकर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति भावुक हो सकता है। एक पुरानी फटी पुरानी धोती लपेटे इस महिला के पास तन के ऊपरी हिस्से को ढकने के लिए एक कपड़ा तक नहीं था।

हिमाचल प्रदेश राज्य मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के सदस्य और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने आज एसजेवीएन के एक अधिकारी ने फोन पर बताया कि एक महिला असहाय अवस्था में अधूरे कपड़ों में भट्टाकुफर से ढली की ओर जा रही है। वह मानसिक रूप से बीमार लगती है और किसी अन्य राज्य की रहने वाली है। यह महिला शिमला में कई दिन से भटक रही थी। वह न तो अपना नाम बता पाती है और न ही कोई पता ठिकाना।

अजय श्रीवास्तव ने सूचना देने वाले अरुण शर्मा को कहा कि वे तब तक उस महिला के आसपास रहें जब तक पुलिस नहीं आ जाती है। उन्होंने तुरंत ढली थाने में फोन कर महिला को रेस्क्यू करने के लिए कहा।

ढली थाने के एएसआई सूरज नेगी कुछ ही मिनटों में महिला के पास पहुंच गए और उसको रेस्क्यू करके अस्पताल ले गए जहां उसका कोविड टेस्ट निगेटिव आया। इसके बाद उन्होंने महिला को जुडिशल मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया। मजिस्ट्रेट ने उसको राज्य मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती कराने के आदेश दिए। अब बाहर रहकर इसका इलाज संभव हो सकेगा।

पिछले कई वर्षों से उमंग फाउंडेशन संवेदनशील आम लोगों और पुलिस के माध्यम से मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के प्रावधानों के अंतर्गत प्रदेश के विभिन्न जिलों से 250 से अधिक बेसहारा मनोरोगियों को रेस्क्यू करवा चुका है। ऐसे लोग  बेसहारा सड़कों पर भटकते रहते हैं और ज्यादातर लोग उन्हें ‘पागल’ कह आगे बढ़ जाते हैं। इनमें से बहुत सारे मनोरोगियों को इलाज के बाद याददाश्त वापस आने पर उनके घर भी भेजा जा चुका है।

अजय श्रीवास्तव का कहना है कि सड़कों पर भटकने वाले बेसहारा मनोरोगी भी हम सब की तरह इंसान हैं। उनके भी मानवाधिकार हैं। यह बात अलग है कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं होता। उन्हें मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के प्रावधानों के अंतर्गत पुलिस को सूचना देकर कोई भी व्यक्ति रेस्क्यू करवा सकता है। संभव है कि इलाज के बाद वे अपने बिछड़े परिवारों से मिल पाएं।